Menu
blogid : 14728 postid : 599755

हिंदी और एक राष्ट्रभाषा की उम्मीद….

अभिव्यक्ति
अभिव्यक्ति
  • 2 Posts
  • 0 Comment

भारत की राष्ट्रभाषा कौन-सी है? इस प्रश्न के उत्तर स्वरूप हमारे पास बस एक चुप्पी है। देश को आज़ाद हुए 66 वर्ष और संविधान बने 63 वर्ष से ज्यादा हो गए, लेकिन आज तक देश की अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है । 40% से ज्यादा आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषा ‘हिंदी’ राष्ट्रभाषा की प्रबल दावेदार मनी जाती है। भारतेंदु हरिश्चंद्र, महात्मा गांधी जैसे जननायकों ने हिंदी को लेकर क्या-क्या सपने नहीं देखे? हिंदी के साहित्यकारो, विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने इसके विकास हेतु कम प्रयास नहीं किए । किन्तु इनके सारे सपने, सारे प्रयास विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालयों, सरकारी दफ्तरों से लेकर संसद भवन, पुलिस स्टेशनों से लेकर उच्चतम न्यायालय और बस स्टैंड से लेकर रेलवे स्टेशनों की दीवारों अथवा किसी बोर्ड पर महज उक्तियों में दर्ज़ हो गए, जिन्हें समय-समय पर चमका भर दिया जाता है। हिंदी के साथ समस्या ये है कि जब भी इसे राष्ट्रभाषा बनाने की चर्चामात्र हुई, इसने बहस को जन्म दिया है और अत्यल्प समय में ही इस बहस ने बड़े विवाद का रूप धारण कर लिया है । भले ही देश में सर्वाधिक बोली-समझी जाने वाली भाषा हिंदी हो, किन्तु राष्ट्रभाषा के रूप में इसकी स्वीकार्यता के विरोध में भी लोग बड़ी संख्या में हैं । विरोध व विवादों का नाता केवल ‘राजभाषा-राष्ट्रभाषा’ को लेकर ही नहीं है, मुझे लगता है राष्ट्र शब्द के जुड़ते ही विवाद शुरू हो जाता है। पिछले दिनों बड़ी संख्या में लोगों ने राष्ट्रगीत के रूप में वंदे मातरम को लेकर असंतोष जाहिर किया था और सोशल नेटवर्किंग साइट पर इसने बड़ा बवाल खड़ा किया था  । भारतीय संविधान के भाग 4ए में राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करना हमारे मूल कर्तव्यों में शामिल है किन्तु अफ़सोस कि राष्ट्रगान भी विवाद का विषय बनने से अछूता न रहा । आज भी काफी लोग इस पर सवाल खड़ा कर रहे हैं कि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1911 में रचित यह गान जॉर्ज पंचम की स्तुति में लिखा गया है । सच्चाई बयां करने हेतु गुरुदेव तो आज हमारे बीच नहीं हैं किंतु 23 मार्च 1939 को सुधारानी देवी को लिखे गए पत्र में लोगों के इस संदेह का उत्तर देने को उन्होंने आत्मावमानना माना है । खैर तमाम संदेहों को दरकिनार करते हुए राष्ट्रगान के प्रति जो सम्मान होना चाहिए, वह हमारे हृदय में बना हुआ है । लेकिन हिंदी जिस सम्मान की हक़दार है, वह उसे पूर्णतः प्राप्त नहीं हो सका है । भले ही गैर हिंदी भाषी वर्ग के कुछ लोगों और कुछ अन्य को हिंदी को अपनाने में आपत्ति हो, किंतु हिंदी एक ऐसी भाषा है, जिसने हर भाषा का सम्मान किया है । अन्य भाषाओं के शब्दों को इसने अपनाया भी है और अन्य भाषाओं को अपने शब्द भी दिए हैं ।

संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343 में संघ के राजभाषा के रूप में हिंदी को स्वीकृति तो मिली है लेकिन आज तक यह पूर्णरूपेण राज-काज की भाषा नहीं बन पायी है। अपितु गाहे-बगाहे यह आलोचना का शिकार ही हुई है। इन सब बातों के वावजूद हिंदी की स्थिति रोने वाली नहीं हुई है । आज जिस आज़ाद हिंदुस्तान में हम जी रहे हैं, हिंदी से अलग उसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती । स्वाधीनता संग्राम में हिंदी का योगदान जगविदित है । ज्ञात हो कि भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को खौफजदा कर देने वाली भाषा हिंदी ही थी। आज़ादी के मिशन को पूरा करने हेतु पत्र-पत्रिकाओं, पर्चों में हिंदी के मिशनरी प्रयोग की बात हो या फिर जनसभाओं में जन-नेताओं द्वारा संबोधन और आज़ादी के संदेश-वहन की, हिंदी ने हिंदुस्तानियों की संपर्क भाषा बन जन जागृति भी की और सम्पूर्ण भारत में  आज़ादी हेतु ऊर्जा की लहर भी दौड़ाई । हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में संपन्न हुए 9वें विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी को विश्व की संपर्क भाषा के रूप में विकसित किए जाने पर गहन परिचर्चा हुई । वहीं इस बात पर खुशी जाहिर की गई कि विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी का स्थान तीसरा है । हिंदी के हो रहे विश्वस्तरीय विस्तार को चीन, जापान सहित यूरोपीय देशों ने भी माना है ।

आज जबकि सम्पूर्ण विश्व हिंदी की महत्ता का लोहा मान रहा है तो इस नए युवा भारत को राष्ट्रभाषा के रूप में इसकी स्वीकृति से ऐतराज नहीं होना चाहिए । जिन्हें ज़्यादा आपत्ति हो, वे चाहे तो व्यक्तिगत स्तर पर साल में केवल एक दिन राष्ट्रभाषा दिवस घोषित कर इसे सीमित रख सकते है । आज देश की अपनी राष्ट्रभाषा हो इसके लिए विरोध से ज्यादा स्वर इसके समर्थन में उठने चाहिए ।

-निलेश कुमार

एम.ए.पत्रकारिता(नियमित) उत्तीर्ण कर स्वतंत्र लेखन

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)

मूल निवास – नवगछिया, भागलपुर(बिहार)

संपर्क- +91 8271680780, Facebook- Nil nishu

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply